भारत में हर साल स्ट्रोक बीमारी के लाखों मामले सामने आते हैं और बोहोत से लोगों की मौत भी होती है. इस बीमारी में मैन कारण लक्षणों की पहचान न होना और समय पर इलाज का न मिलने से मरीज की मौत तक हो सकती है.
हमारे शरीर में कई प्रकार की बिभिन्न बीमारियां होती हैं.
इनमें कुछ बीमारी हमारी खराब लाइफस्टाइल और ख़राब खानपान की गलत आदतों से बॉडी में पनपती हैं. वहीं, कुछ बुरी बीमारियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के जनरेशन व्यक्ति में जाती हैं, जिन्हें जेनेटिक डिसऑर्डर या फिर अनुवांशिक बीमारी भी कहते हैं. पहले भी कुछ रिसर्च भी आई हैं जिनमें से एक खास प्रकार के जेनेटिक रीजन को देश अफ्रीकी व अमेरिकियों में अल्जाइमर बीमारी का एक बड़ा ही खतरनाक रिस्क फैक्टर माना गया था.
इस जेनेटिक बीमारी को स्ट्रोक बीमारी के खतरे से भी जोड़ा गया था.
Stroke Disease Research :-
अब आयी एक नई रिसर्च में यह पता चला है कि न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से जूझ रहे बोहोत से साउथ एशिया के लोगों और भारतीय मरीजों में COBL नाम का एक बेहद जेनेटिक रीजन की फ्रीक्वेंसी काफी ही अधिक पाई गई है. इस रिसर्च को नेचर जर्नल में भी प्रकाशित किया गया है.

एम्स में न्यूरोलॉजी के पूर्व प्रमुख साथ में ही और अब राजेंद्र प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स), रांची के निदेशक डॉ कामेश्वर प्रसाद अब इस रिसर्च के प्रमुख शोधकर्ता थे.
इस स्टडी में दो मिलियन से ज्यादा स्ट्रोक मरीजों और दो मिलियन सामान्य लोग शामिल थे. अध्ययन में किए गए व्यक्ति पांच अलग-अलग वंशों से थे. इनमें से कुछ यूरोपीय, अफ्रीकी, हिस्पैनिक्स, पूर्वी एशियाई और दक्षिण एशियाई लोगों को भी शामिल किया गया था. यूरोपीय, अफ्रीकी देशों के लोगों में तो इस जेनेटिक रीजन की पुष्टि नहीं हुई.
जबकि हमारे साउथ एशिया के लोगों में COBL की यह मौजूदगी मिली. डॉ प्रसाद ने कहा कि COBL से हमारे दक्षिण एशियाई लोगों में स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ जाता है.
ऐसे हुई स्टडी :-
डॉ प्रसाद की टीम ने लगभग 4,088 लोगों के डेटा का योगदान दिया था. और इसमें 1,609 स्ट्रोक के मामले थे और साथ में ही 2,479 कंट्रोल ग्रुप के थे. ये सभी लोग दक्षिण एशियाई के समूह का हिस्सा थे. इस अध्ययन में इन लोगों में से 89 जेनेटिक रीजन की पहचान हुई, और जिनमें से 61 तो नए थे.
इन रीजन को पहली बार यह इस स्ट्रोक के लिए पहचाना गया था, जिससे पता चलता है कि यह दक्षिण एशियाई लोगों में जेनेटिक रीजन की वजह से स्ट्रोक बीमारी का रिस्क काफी ज्यादा है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट :-
डॉ प्रसाद का कहना है कि इन सभी जेनेटिक रीजन की खोज से स्ट्रोक बीमारी के इलाज में काफी सहायता मिलेगी. चूंकि यह दक्षिण एशियाई आबादी में स्ट्रोक का खतरा बेहद ज्यादा है. तो ऐसे में इन जेनेटिक रीजन से बीमारी के बारे में हमको ज्यादा जानकारी प्राप्त हो सकेगी, और साथ में ही इससे बीमारी का सही इलाज विकसित करने में मदद भी मिलेगी.
दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल के एक न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के कुछ वरिष्ठ सर्जन डॉ. राजेश आचार्य ने यह TV9 भारतवर्ष से बातचीत में बताया कि यह स्ट्रोक बीमारी की समस्या जेनेटिक भी हो सकती है, यानी अगर परिवार में किसी को भी ये बीमारी हुई है तो उसके एक से दूसरी जनरेशन में जा सकती है. और
डॉ. आचार्य के मुताबिक,इस प्रकार के अध्ययन से स्ट्रोक बीमारी के बारे में काफी जानकारी मिली है. इससे यह तो साफ हुआ ही है कि स्ट्रोक बीमारी जैसी न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के लिए जेनेटिक भी काफी हद तक जिम्मेदार हो सकता है.
पहले ये समस्या ज्यादातर बुजुर्गों में देखी जाती थी, लेकिन अब यह समस्या कम उम्र में ही ऐसे केस आ रहे हैं.डॉक्टरों का भी कहना है कि स्ट्रोक बीमारी की स्थिति में 1 से 3 घंटे के बीच मरीज को इलाज मिल ही जाना चाहिए.
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